--: भ्रष्ट चालीसा BHRASHT CHALISAA :--
अपने पैसे के जोर पर , अपनी सब बाते मनवाते हो !
अपने पैसे के घमंड में चूर तुम , सारे गलत काम करते और करवाते हो !
परीक्षा में कमज़ोर छात्रो की जगह , दुसरे को बिठ्वाते हो !
ख़ाली बिठवाते ही नहीं , पैसे ले कर उन्हें पास भी करवाते हो !
जब दाखला ना मिले कॉलेज में , तो दाखला भी करवाते हो !
जब जेनेरल सीट न मिले , तो आरक्षित सीट दिलवाते हो !
आरक्षण का प्रमाण पत्र ना हो , तो वो भी बनवाते हो !
अपने पैसे के जोर पर , अपनी सब बाते मनवाते हो !अपने पैसे के घमंड में चूर तुम , सारे गलत काम करते और करवाते हो .....
जब जीत की उम्मीद ना हो चुनाव में , तो नहीं बिलकुल घबराते हो !
वोटर्स को धमकाते हो , बूथों पर कब्ज़ा करते और करवाते हो !
पैसे की भूख इतनी बढ़ चुकी तुम्हारी , इंसानियत का खून करवाते हो !
बच्चो की किताबें , दोपहर का खाना , स्वयं ही खा जातें हो !
अपने पैसे के घमंड में चूर तुम , सारे गलत काम करते और करवाते हो .....
मजदूरों को धोखा देतें , भरमाते हो एवं आपस में लाद्वातें हो !
मजदूरों के पी ऍफ़ के पैसे को भी , अपनी अय्याशी में लगवाते हो !
इतने सारे गलत काम करते/ करवाते हो, फिर भी इंसान कहलाते हो !
इतने सब से पेट नहीं भरता तो , पशुओ का चारा भी डकार जाते हो !
अपने फायदे के लिए दंगे करवाते , व भाई भाई को लड्वातें हो !
अपने पैसे के घमंड में चूर तुम , सारे गलत काम करते और करवाते हो .....
मंदिर - मस्जिद - गिरजये गिरवाते , व जल्वातें हो !
हिन्दू - मुश्लिम - सिख - इसाई को लड्वातें , व मरवाते हो !
इंसानियत को शर्मशार कर भी , इंसान कहलातें हो !
अपने पैसे के जोर पर , अपनी सब बाते मनवाते हो !
अपने पैसे के घमंड में चूर तुम , सारे गलत काम करते और करवाते हो .....
अपने पैसे के घमंड में चूर तुम , नकली शराब बेचतें, व बनवातें !
नकली भारतीय मुद्रा छापते , व विदेशो में छपवाते हो !
सरकारी भवनों - पार्को पर तुमअपने कब्ज़े करते ,व करवातें हो !
अपने फायदें के लिए गरीब - माशूम लडकियों को उठाते , व उठवाते हो !
गरीब - माशूम लडकियों को चकला घरो में बेचतें, व बिक्वातें हो !
भूख इतनी बढ़ चुकी , अब तो चकला घर खुद ही चलते हो !
आटा दाल चावल मशाले , सभी में मिलावट करवाते हो !
ये सभी दुष्कर्म करते हुए डरते नहीं मरते नहीं , दांत दिखलाते हो !
बेशर्मी की हद हो गई , मुर्दों को भी गीली की गई लकडियो में जल्वातें हो !
इनसब गलत कामों से धन इकट्ठा करते , व करवाते हो !
अपनें देश को धोखा दे कर , सारा इकट्ठा धन विदेशो में जमा करवाते हो !
अपने पैसे के जोर पर , अपनी सब बाते मनवाते हो !
अपने पैसे के घमंड में चूर तुम , सारे गलत काम करते और करवाते हो .....
इंसानियत को शर्मशार कर भी , इंसान कहलातें हो ....... इंसान कहलाते हो ......
लेखक :-- एक दुखी देश प्रेमी
नरेश कुमार शर्मा "नरेश"