Sunday 23 October 2011

हम तो पसंद है जलती आग हथेली पर ले कर चलने वाले .......

यु तो सोना आग में ताप कर ही , कुन्द्दन हुआ करता है !

जो सजता है शुराही सी गर्दन में , और ताज की शोभा भी बढ़ता है .....

हम कुन्द्दन तो ना बन सकेंगे , हम सोना नहीं हम तो तपाने वाले !

आग से डरते नहीं कभी , हम सोना तपाने,कुन्द्दन बनाने वाले........

यूँ तो शिलाखंडों मे छुपे , लावे नहीं दिखा करते है !

पर जो होते है , भूगर्भ वैज्ञानिक हम जैसे वो देख लिया करते है ........

सबने शिलाखंडो को , सिर्फ़ पिघलते देखा होगा !

पर हमने तो देखा है उन्हें मचलते हुए ..........

और भी देखना चाहता हूँ , पहले भी कई देखे हैं धधकते हुए ..........

पहले भी शांत किये है शिलाखंड धधकते हुए , और भी शांत करना चाहता हूँ ...

ऐसे ही एक शांत शिलाखंड पर अपना अपना दिन गुजारा करता हूँ !

पहले भी शांत किये है शिलाखंड धधकते हुए , और भी शांत करना चाहता हूँ ...

दिन तो बहूत गुजार लिए , अब शुकून से शाम गुजारना चाहता हूँ ............

अब शुकून से शाम गुजारना चाहता हूँ .. अब शुकून से शाम गुजारना चाहता हूँ ............



नरेश कुमार शर्मा "नरेश "

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